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प्रस्तावना

भारत की विश्वप्रसिद्ध कला एवं सांस्कृतिक विरासतों मे बिहार सर्वाधिक समृद्ध प्रदेश रहा है। यहाँ की कला, विश्वविश्रुत और विश्वसमादृत रही है। कला की परिभाषा दी जाए तो, सौन्दर्य को संपूर्णता मे प्रकट करना ही कला है।

हमारे पूर्वजों ने कला को दो श्रेणी मे बाँटकर कला के सौन्दर्य बोध का मार्गदर्शन किया है-

  1. उपयोगी कला
  2. ललित कला

उपयोगी कला : जन जीवन में संस्कार, रीति-रिवाज और लोक व्यवहार से जुड़ी कला। इसके अंतर्गत लोहे से बनी वस्तुओं (लौह शिल्प) को लोक जीवन मे जिसे लुहारगिरी कहते हैं। इसी तरह मिट्टी से बनी वस्तुओं (मृण्मय शिल्प) को कुंभकार या कुम्हार की कला, लकड़ी से बनी वस्तुओं (काष्ठ शिल्प) को बढ़ई की कला कहते हैं। इसके अतिरिक्त बांस आदि की कला भी उपयोगी कला में समाहित है।

ललित कला : इसके अंतर्गत चित्रकला, गायन कला, वादन कला, नृत्य कला, काव्य कला, अभिनय कला, वाचन कला आदि शामिल है।

बिहार की कला विरासतों में चित्रकला एवं शिल्प कला से संबंधित मिथिला के भित्तिचित्र, भूमिचित्र (अरिपन), मिट्टी की मूर्ति एवं खिलौने, मोथी एवं सीकी के बने विविध प्रकार के हस्तशिल्प, परंपरागत कढ़ाई, सिलाई आदि प्रसिद्ध है। इसके साथ ही गाथाओं पर आधारित चित्रकला, व्यावहारिक जीवन की कला, संस्कार संबंधी चित्रकला, मंजूषा कला, टिकुली कला आदि लोककला की विशेष परंपरा है। आधुनिक काल मे भी पटनाकलम की चित्रकला, छापाकला, पेपरमेसी, एप्लाइड आर्ट (प्रायोगिक कला) आदि की गौरवशाली परंपरा समृद्ध है। इस प्रकार ये कलाएं बिहार को राष्ट्र स्तर पर सर्वाधिक समृद्ध कला विरासत वाले प्रदेश के रूप में व्यक्त करती है।

बिहार, ललित कला के गायन कला, वादन कला, नृत्य कला, काव्य कला एवं अभिनय कला की विरासतों में भी सर्वाधिक समृद्ध रहा है। प्रमुख रूप से मिथिला, भोजपुर, मगध, वैशाली और अंग-जनपद की लोक संस्कृति में निहित लौकिक संबंधों, परंपरागत मूल्यों एवं रीति-रिवाजों का सम्यक् दर्शन है यहॉ के लगभग 150 प्रकार के पारंपरिक लोकगीतों एवं धुनों में। नदी संस्कृति में गंगा, कोसी और कमला नदी संस्कृति के गीतों की भी समृद्ध विरासत बिहार में है।

गायन कला का पारंपरिक आदर्श, जिसमें कहा गया है कि संगीत विद्या का प्रतिपादन इसलिए हुआ कि भगवान को पुकारने का और महापुरूषो की गाथा गाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम संगीत है। यह परंपरा बिहार में प्रचलित विविध प्रकार के लोक भजनों सहित राजा सल्हेस, नैका बनिजारा, कुवँर वृजभान, सोरठी वृजभार, दुलरा दयाल, शीत वसन्त, दीना भदरी, वीर लोरिक, विहुला विषहरि, नेटुआ दयाल, हिरनी बिरनी, रेशमा चौहरमल आदि महापुरूषों के चरित्र को गीत-संगीत-नृत्य-नाट्य शैली में प्रस्तुत करने की परंपरा का समृद्धतम लोक विरासत बिहार में है।

लोक कला के अतिरिक्त शास्त्रीय संगीत कला में भी बिहार की समृद्ध विरासत का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के चार ध्रुपद घरानों में तीन दरभंगा, बेतिया और डुमरॉव घराना बिहार में है। इसके अतिरिक्त ख्याल गायिकी का गया, आरा, बड़हिया, पछगछिया, बनैली, अमता, पटना घराना सहित ठुमरी गायन एवं शास्त्रीय नृत्य की परंपरा भी अतीत काल से राज्याश्रय में समृद्ध रही है। ऐतिहासिक प्रमाण के अनुसार मगध की नगरवधू शालवती और वैशाली की नगरवधू आम्रपाली अपने समय की स्त्रियों मे विश्वस्तर पर 64 कलाओं में सर्वाधिक कलाओं की मर्मज्ञ थी। काव्यकला में भी आदि कवि महर्षि बाल्मीकि, महाकवि कालिदास, महाकवि विद्यापति, उपन्यासकार वाणभट्ट जैसे अनगिनत मनिषियों और आधुनिक काल में नागार्जुन, दिनकर, नेपाली, अज्ञेय, प्रभात जैसे अनगिनत यशस्वी काव्यकला मर्मज्ञों का स्थान बिहार ही रहा है।

बिहार की इन समृद्धतम गौरवशाली कला सांस्कृतिक विरासतों से जुड़े ऐसे कलाकारो, संस्कृति कर्मियों के बीच आज भी कई यशस्वी लोकप्रिय एवं विरासतों के प्रति समर्पित कलाकार बिहार मे हैं। इन कलाकारों की उपयोगिता सुनिश्चित हो, यहाँ की कला, सांस्कृतिक जगत का योगदान राष्ट्रीय एवं वैश्विक पटल पर प्रस्तुत हो, इसके लिए, BiharArt.org की परिकल्पना की गई है।

हमारा ध्येय बिहार के कला, सांस्कृतिक विरासतों का संरक्षण, पोषण, प्रोत्साहन एवं संवर्द्धन करना है, जिसमें बिहार के यशस्वी चित्रकार, मूर्तिशिल्पी, हस्तशिल्पी, लोक गीत / गाथा गायक, शास्त्रीय एवं सुगम संगीत गायक, वादक, नर्तक / नृत्यांगना का विस्तृत परिचय (प्रोफाइल), उनकी कर्मसाधना एवं रचनात्मक उपलब्धियॉ प्रकाशित और प्रचारित हो।

हमे विश्वास है कि BiharArt.org एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें विश्वस्तर पर फैले बिहार के लोगों, बिहार की कला संस्कृति के जिज्ञासुओं, कला-प्रेमियों, शोध कर्ताओं सहित यहा आने वाले पर्यटकों के लिए अधिकाधिक सूचनापरक, ज्ञानवर्द्धक और रोचक साबित होगी।